वाटर टर्बाइन किया है? वाटर टर्बाइन जेनरेटर का निर्माण कैसे करें?

वाटर टर्बाइन किया है? वाटर टर्बाइन जेनरेटर का निर्माण कैसे करें? 

By- Kishor Mallick


क्या आप जानते है वाटर टर्बाइन किया है? वाटर टर्बाइन जेनरेटर का निर्माण कैसे करें? यदि नहीं तब तो आपके लिए एक बहुत ही बढ़िया मौका है इस technology को आसानी से समझने के लिए. चाहे आप एक technical student या कोई non-tech background से हो, इस  वाटर टर्बाइन किया है? वाटर टर्बाइन जेनरेटर का निर्माण कैसे करें?  को समझने में सभी की भलाई है. क्यूंकि इसे अलग अलग Techonology सभी pawar plant जगहों में इस्तमाल किया जाता है. वैसे एक  student के लिए तो इसे समझना बहुत ही जरुरी बात होता है. क्यूंकि अगर आपको Water turbine के बारे में पूरी तरह समझना है तब Water turbine का क्या कार्य के विषय में जानना बहुत ही जरुरी हो जाता है.

अनुक्रम  छुपाएँ

1. वाटर टर्बाइन किया है?
2. टरबाइन का आविष्कार किसने किया 
3. टरबाइन का आविष्कार कब किया
4. वाटर टरबाइन कैसे काम करता है 
5. जल टरबाइनों के प्रकार(Types of Water Turbines)
6. जल टर्बाइन इतिहास(Water Turbine History)
7. वाटर टर्बाइन जेनरेटर का निर्माण कैसे करें 

वाटर टर्बाइन किया है? 


Electricity उत्पन करने के लिए वाटर टर्बाइन सबसे जयादा प्रयोग किये जाने वाला विधि है ये पानी की गतिज energy और संभावित energy को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करता है।

  इसमें उच्च दबाब वाला पानी इसके ब्लेड के ऊपर छोरा जाता है जिससे की ब्लेड में गतिज energy उत्पन होती है जो बिजली बनाने के लिए  जनरेटर से जुड़ा होता है। 

  आजकल Mostly Industries में जल टर्बाइन के द्वारा ही बिजली की आपूर्ति किया जा रहा है। जल टर्बाइन का उपयोग Mostly पहाड़ी इलाका में किया जाता है क्योंकि वहां पानी प्रयाप्त मात्रा में होता है। 

  जलचक्र या जल टरबाइन (water turbines) वे घूर्णी इंजन हैं जो बहती हुई जलराशि में निहित गतिज energy को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित कर देते हैं। इनका आधुनिक विकास 19 वीं शताब्दी में हुआ तथा विद्युत ग्रिड के आने के पहले तक वे औद्योगिक शक्ति के लिए बहुतायत में प्रयोग की जातीं थी।

  ए पानी टरबाइन एक रोटरी मशीन है जो Converts होती है गतिज energy तथा संभावित energy यांत्रिक कार्य में पानी की।


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1. टर्बाइन क्या है? टरबाइन कितने प्रकार है?

2. गैस टर्बाइन क्या है?What is a gas turbine?

3. स्टिम टर्बाइन किया होता है?What is a steam turbine?


  पानी टर्बाइन 19 वीं शताब्दी में विकसित किए गए थे और व्यापक रूप से औद्योगिक शक्ति के लिए उपयोग किए गए थे विद्युत ग्रिड। अब वे ज्यादातर बिजली उत्पादन के लिए उपयोग किए जाते हैं। पानी के टर्बाइन ज्यादातर में पाए जाते हैं बांधों पानी की संभावित energy से विद्युत शक्ति उत्पन्न करना।

  जल टरबाइन वे घूर्णी इंजन हैं जो बहती हुई स्लेश में निहित गतिज ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित. उनके आधुनिक विकास में सदी और विद्युत ग्रिड के आने के पहले तक वे industrial बहुतायत में बिजली के उपयोग के लिए अंधा था. वर्तमान समय में उन का उपयोग मुख्य रूप से बिजली पैदा करने के लिए है. 

  Pancreas के विभिन्न प्रकार से बनाया जा करने के लिए भी बहुत ही सरल प्रकार की युक्तियाँ उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे हैं के लिए prehistoric काल से बिजली उत्पादन के लिए होता चला आया है. समय-समय पर आवश्यकताओं और परिस्थितियों से प्रेरित होकर, इन लोगों के कई सुधारों, इसलिए पानी टरबाइन भी पनचक्की का ही विकसित रूप है । 

  twentieth सदी की पहली छमाही में, तो वे कर रहे हैं, तो उपयोग में वृद्धि हुई है कि के द्वारा लगभग सभी सभ्य देशों में जगह छोटे बड़े अनेक जल विद्युत बिजली घर बनाए जाने लगे. इस कारण से दूर चमक के ग्रामीण इलाकों में भी बड़े सस्ते भाव पर शक्ति प्राप्त करते हैं और इस प्रकार उद्योग के विकास में व्यक्ति नहीं मिला.


टरबाइन का आविष्कार किसने किया 

टरबाइन एक रोटरी मैकेनिकल डिवाइस है जिसके द्वारा किसी बहते हुए द्रव (जैसे हवा, पानी) की गतिज ऊर्जा ( Kinetic Energy)  का घूर्णन ऊर्जा (Rotating Energy) में परिवर्तित करके मशीनी कार्य के लिए इस्तेमाल की जाती  है एक टरबाइन एक टर्बोमाचिन है 

    जिसमें कम से कम एक घुमने वाला भाग होती है जिसे रोटर असेंबली कहा जाता है, जो कि ब्लेड से शाफ्ट या ड्रम हो सकता है और ब्लेड पर तरल पदार्थ या अन्य पदार्थ जैसे जैसे हवा, पानी  दबाव डालता है तो वह घूमते है जिस से वह गतिज ऊर्जा ( Kinetic Energy) का घूर्णन ऊर्जा (Rotating Energy) में परिवर्तित कर देती है

    आज विदुत उत्पादन में टरबाइन का इस्तेमाल बहुत किया जाता  है इसमें गतिज ऊर्जा को घूर्णन ऊर्जा (Rotating Energy) में परिवर्तित करके  बिजली उत्पादन  करने में इस्तेमाल  किया जाता है   जैसे पवन चक्की काम करती है जिसे खुली जगह में लगाया जाता है  जहाँ पर पर्याप्त हवा चलती है जिससे गतिज ऊर्जा को घूर्णन ऊर्जा में बदल के उसे से बिजली बनाई जाती है 

     टरबाइन का इस्तेमाल कई प्रकार से किया जाता है और उपयोग के अनुसार टरबाइन भी कई प्रकार की होती है टरबाइन का इस्तेमाल स्थान और  वातावरण को देखकर किया जाता है जैसे खुले स्थानों पर पवन चक्की लगाकर और पहाड़ी इलाकों में जल टरबाइन का इस्तेमाल बड़े बड़े डैम बनाकर किया जाता है


टरबाइन का आविष्कार कब किया

सबसे पहले भाप टरबाइन का आविष्कार ब्रिटिश इंजीनियर सर चार्ल्स पार्सन्स सन , 1884 में किया था में और  “टरबाइन” शब्द को सन ,1822 में फ्रांसीसी खनन इंजीनियर क्लाउड बर्डिन ने लैटिन शब्द टर्बो या भंवर से, “मेस टर्बाइन hydraulics ओ मशीन rotatoires ए ग्रेडे वेटेसे” से लिया था ,

  जिसे  उन्होंने एकेडेमी रॉयल डेस विज्ञान में प्रस्तुत किया था और पहली  पानी टरबाइन का निर्माण पेरिस क्लाउड बर्डिन के एक पूर्व छात्र  बेनोइट फोरनेरोन ने किया और 1 9वीं सदी के मध्य में टरबाइन डिजाइन के तरीकों को विकसित किया गया था


वाटर टरबाइन कैसे काम करता है 

जल टरबाइन या जलचक्र 

उन मूल चालक यंत्रों (prime movers) को कहते हैं जो जलराशि में निहित स्थितिज ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित कर देते हैं। पनचक्कियाँ विभिन्न प्रकार से बनाई जाने पर भी बड़ी ही सरल प्रकार की युक्तियाँ (devices) हैं, जिनका प्रयोग प्रागैतिहासिक काल से ही शक्ति उत्पादन करने के लिए होता चला आया है। 

  समय समय पर आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों से प्रेरित होकर लोगों ने इनमें अनेक सुधार किए, अत: जल टरबाइन भी पनचक्की का ही विकसित रूप है। पिछली अर्धशताब्दी से तो इनका इतना उपयोग बढ़ गया है कि इनके द्वारा लगभग सभी सभ्य देशों में जगह जगह, छोटे बड़े अनेक जल-विद्युच्छक्ति-गृह बनाए जाने लगे। इस कारण सुदूर जलहीन देहातों में भी बड़े सस्ते भाव पर बिजली प्राप्त होने लगी और नाना प्रकार के उद्योग धंधों के विकास को प्रत्साहन मिला।

  जिन सिद्धांतों के आधार पर इन संयंत्रों की अभिकल्पना की जाती है, वे सभी प्रकार के प्रथम चालक यंत्रों में लागू होते हैं, जिनका विवेचन भाप इंजन ओर भाप टरबाइन शीर्षक लेखों में विस्तार से किया गया है। इनके अतिरिक्त बाँध, जलीयशक्ति पोषण, जलविज्ञान और जलइंजीनियरी शीर्षक लेख भी द्रष्टव्य हैं, जिनमें जल की स्थितिज तथा गतिज ऊर्जा, बहाब आदि का विषय विस्तार से समझाया गया है।

  जल राशि में निहित स्थितिज ऊर्जा का गतिज ऊर्जा में परिवर्तन कैसे होता है, इसे संक्षेप में समझने के लिए कल्पना कीजिए कि कुछ ऊँचाई पर स्थित एक टंकी में से पानी की एक धारा उसी के नीचे स्थित जलाशय में गिर रही है। इस टंकी में भरे प्रति पाउंड पानी में, ऊँचाई के कारण कुछ फुट-पाउंड स्थितिज ऊर्जा निहित है। 

  जब यह पानी नीचे गिरता है तब नीचे गिरते समय, यह स्थितिज ऊर्जा क्रमश: गतिज ऊर्जा में परिवर्तित होने लगती है और जब वह धारा नीचेवाले जलाशय की जलतल रेखा पर पहुँचती है तब उसकी समस्त स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में परिणत हो चुकती है। इस जल-तल-रेखा तक पहुँचते समय यदि उस एक पाउंड पानी का वेग व (V) फुट प्रति सेंकड हो तो उसमें फुट पाउंड गतिज ऊर्जा होगी। 

  यदिटंकी की ऊँचाई उ (h) फुट मान लें तो टंकी के प्रति पाउंड पानी में ऊ(H) फुट पाउंड स्थितिज ऊर्जा होगी। अत: नीचे पहुँचने पर। स्थितिज ऊर्जा की हानि = गतिज ऊर्जा की प्राप्ति, अर्थात्‌ अब ज्यों ही वह पानी जलाशय में प्रविष्ट होगा, उसके पानी में विक्षोभ उत्पन्न हो जाएगा और फिर थोड़ी देर में शांत भी हो जायगा। इस उदाहरण में, 

  ऊपर से आनेवाले पानी में निहित गतिज ऊर्जा जलाशय के पानी में विक्षोभ उत्पन्न करके ही बरबाद हो गई और उससे कोई उपयोगी कार्य नहीं हो सका। यदि वही पानी एक नल में से होकर नीचे आता तो वह उस नल के मुहाने पर दाब उत्पन्न कर किसी जलचक्र अथवा इंजन को चला सकता था। जब भी किसी स्थान पर जल के प्रवाह अथवा वर्चस (head) द्वारा प्राप्त ऊर्जा की सहायता से कोई जलचालित मोटर या टरबाइन चलाकर शक्ति उन्पादन करने का विचार किया जाता है, तो उसके पहले आस पास में स्थित जलराशि अथवा जलस्रोतों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा का यथासाध्य सही अनुमान लगा लिया जाता है। जलचालित मोटरों का वर्गीकरण - यह वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार है :


1. जलधारा के प्रवाह तथा गुरुत्वाकर्षण जनित ऊर्जा चालित चक्र 

ये चक्र जलधारा के प्रवाह में रुकावट डालने पर होलेवाले संघट्टन (impact) अथवा चक्र की डोलचियों में भरे पानी के भार के कारण चला करते हैं।


2. आवेगचक्र (Impulse Wheels) और टरबाइन 

ये किसी तुंग (nozzle) में से निकलनेवाली पानी की अत्यधिक वेगयुक्त प्रधार (jet) की गतिज ऊर्जा द्वारा चलते हैं। इस प्रकार के आवेगचक्रों का वहीं उपयोग होता है जहाँ पर पानी की मात्रा तो सीमित होती है लेकिन उसका वर्चस्‌ 300 से 3,000 फुट तक ऊँचा होता है।


3. प्रतिक्रिया टरबाइन (Reaction Turbine) 

इसमें पानी की गतिज ऊर्जा तथा दाब दोनों का ही उपयोग होता है। ये वहीं लगाए जाते हैं जहाँ परिस्थितियाँ आवेगचक्र तथा आवेग टरबाइनों के लिए बताई परिस्थितियों से विपरीत होती हैं, अर्थात्‌ जहाँ पानी अल्प वर्चस्‌ युक्त होते हुए भी विपुल मात्रा में प्राप्त हो सकता है। इस पानी का वर्चस्‌ 5 से लेकर 500 फुट तक हो सकता है।

  जलधारा के प्रवाह तथा गुरुत्वाकर्षण जनित ऊर्जा से चलनेवाले चक्रों का उपयोग तो अब देहातों में कुटीर उद्योगों के उपयुक्त ही समझा जाता है, विशेषकर उन पहाड़ी प्रांतों में जहाँ निरंतर झरने बहते रहते हैं। इस प्रकार के चक्रों में अध:प्रवाही (Under-shot), पॉन्सले (Poncelet) मध्यप्रवाही (Breast-wheel) और ऊर्ध्वप्रवाही (Over-shot) चक्र प्रमुख हैं, लेकिन बड़ी मात्रा में विद्युदुत्पादन के लिए ये सर्वथा अनुपयुक्त समझे जाते हैं, फिर भी सहायक मोटर के रूप में, बड़े बिजलीघरों में, ऊर्ध्वप्रवाही चक्र का उपयोग, आवश्यकता पड़ने पर, आधुनिक संयंत्रों के साथ कर लिया जाता है।

अनुक्रम  छुपाएँ

1. Downstream cycle 

2. Ponsley's circle 

3. Diaphragm cycle 

4. Upward flow cycle

5. Impulse cycle and turbine 

6. फूर्नेरॉन (Fourneyron) का टरबाइन 

7. Inbound Turbine of Francis 

8. Runner cycle of turbines 

9. धावनचक्रों की क्षमता 


Downstream cycle 

इस प्रकार के चक्र का सैद्धांतिक आरेखचित्र 5. में दिखाया गया है, जिसकी कार्यक्षमता लगभग 25 प्रति शत ही होने पाती है, क्योंकि इसमें पानी की बहुत सी ऊर्जा व्यर्थ में नष्ट हो जाती है। 1,800 ई0 तक इसका उपयोग बहुत हुआ करता था।


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1. TECHNOLOGY क्या है | WHAT IS TECHNOLOGY? पार्ट -1

2. टेक्नोलॉजीज कितने प्रकार की होती है? प्रौद्योगिकी का प्रकार क्या है

3. सूचना प्रौद्योगिकी किया है ? प्रौद्योगिकी का अर्थ किया है


Ponsley's circle 

इस प्रकार के चक्र का सैद्धातिक आरेखचित्र 6. में दिखाया गया है। यह अर्धप्रवाही चक्र का ही परिष्कृत रूप है। इसकी पंखुड़ियाँ इस प्रकार से मोड़कर गोलाईदार बनाई जाती हैं कि इनमें पानी बिना झटका मारे ही प्रवेश कर जाता है और उनमें से बाहर निकलते समय वह चक्र की परिधि की स्पर्शरेखीय दिशा में होकर ही निकलता है, जिसे चक्र को अधिक आवेग प्राप्त हो जाता है और चक्र की कार्यक्षमता लगभग दुगनी हो जाती है। 


Diaphragm cycle 

इस प्रकार के चक्र का सैद्धांतिक आरेखचित्र 7. में दिखाया गया है। यह भी अध:प्रवाही चक्र का ही परिष्कृत रूप है। इसकी कोनियानुमा पंखुड़ियों में पानी, चक्र की धुरी के तल से कुछ ऊँचाई पर स्थित पंखुड़ियों में भरना आरंभ होता है और उनके नीचे आने तक उन्हों में भरा रहता है। चक्र की खोल भी इस पानी को उनमें भरा रखने में कुछ सहायता करती है, अत: यह चक्र मुख्यतया पानी के भार के कारण ही घूमता है। मध्यप्रवाही चक्र भी दो प्रकार के होते हैं। 

  एक तो मध्योच्च प्रवाही (High Breast), जैसा उपर्युक्त वर्णित चित्र में दिखाया गया है और दूसरा अध:मध्यप्रवाही (Low Breast) कहलाता है। इसकी पंखुड़ियों में पानी धुरी के तल से कुछ नीचे की पंखुड़ियों में भरना आरंभ होता है, जिसमें पानी के भार और प्रवाहजनित, दोनों प्रकार की, ऊर्जाओं का उपयोग होता है। इन चक्रों की कार्यक्षमता 50 प्रति शत से लेकर 80 प्रति शत तक हो सकती है, जो इनकी बनावट तथा आकार पर निर्भर करती है। इनका प्रयोग 19वीं शताब्दी के मध्य तक होता रहा, फिर बंद हो गया।


Upward flow cycle

इस प्रकार के चक्र का सैद्धांतिक आरेखचित्र 8 में दिखाया गया है। इसका कार्यक्षमता 70 प्रतिशत से लेकर 85 प्रतिशत तक पहुँच जाती है, जो आधुनिक जल टरबाइनों के लगभग समकक्ष ही है यह अपेक्षाकृत आधुनिक प्रकार का गुरुत्वाकर्षणजनित ऊर्जाचालित जलचक्र है, जिसका प्रयोग थोड़ी मात्रा में विद्युच्छक्ति उत्पन्न करने के लिए आजकल भी सहायक मोटर के रूप में होता है तथा अच्छा काम देता है।


Impulse cycle and turbine 

आधुनिक प्रकार के आवेग चक्र पॉन्सले के अध:प्रवाही चक्र के परिष्कृत रूप हैं। इनमें स्लूस मार्ग (sluice way) के स्थान पर तुड़ों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से पानी की प्रधार (jet) बड़े बेग से निकलकर चक्र की पंखुड़ियों से टकराती है। इस ढंग के जिस संयंत्र का सर्वाधिक प्रचार है वह पेल्टन चक्र (Pelton's Wheel) के नाम से प्रसिद्ध है, जिसका सैद्धान्तिक आरेख चित्र 9. क में दिखाया गया है और 9 ख में उसकी एक डोलची (bucket) तथा पानी की धार का आरेख है। 

   डोलची को दो जुड़वाँ प्यालों के रूप में इस प्रकार बना दिया गया है कि पानी की प्रधार उसके मध्य में टकराते ही फटकर, दो भागों में विभक्त होकर , एक दूसरी से लगभग 180 डिग्री के कोणांतर पर चलने लगती है। यदि ये दोनों उपप्रधाराएँ अपनी मूल प्रधारा से बिलकुल विपरीत दिशा में बह निकले तो अवश्य ही पेल्टन चक्र की कार्यक्षमता 100 प्रति शत हो जाय, लेकिन इन्हें जान बूझकर तिरछा करके निकाला जाता है, जिससे ये अपने पासवाली डोलची से टकराएँ नहीं। ऐसा करने से अवश्य ही कुछ ऊर्जा घर्षण में बरबाद हो जाती है, जिससे इस चक्र की कार्य-क्षमता लगभग 80 प्रतिशत ही रह जाती है।

   इसमें प चिह्नित मार्ग से पानी प्रविष्ट होता है, फ टोंटी है और ब चक्र पर लगे पंख (blades) हैं। इन तुंडों में प्रवेश करते समय, बाहर निकलते समय की अपेक्षा, पानी का वेग बहुत अधिक होता है। अत: बाहर की तरफ उनका रास्ता क्रमश: चौड़ा कर दिया जाता है। संयुक्त राज्य, अमरीका में इस टरबाइन का निर्माण 'विक्टर उच्चदाब टरबाइन' नाम से किया जाता है, जिसकी कार्यक्षमता 70 प्रतिशत से लेकर 80 प्रतिशत तक, उसके अभिकल्प तथा आकार के अनुसार होती है।

  प्रतिक्रिया टरबाइन (Reaction Turbine) - इसका सिद्धांत भाप टरबाइन के लेख में समझाया जगया है। आवेगचक्र में तो पानी की गत्यात्मक ऊर्जा ही काम करती है, लेकिन अभिक्रियात्मक चक्र में गयात्मक तथा दाबजनित दोनों ही प्रकार की ऊर्जाएँ सम्मिलित रूप से काम करती हैं। पाठकों ने चित्र 11 जैसा बगीचों में पानी छिड़कने का घूमनेवाला फुहारा देखा होगा। स्काँच मिल और वार्कर मिलें इसी सिद्धांत पर बनाई गई थीं, जो आदिम प्रकार की अभिक्रियात्मक टरबाइनें थी। चित्र में दिखाए गए फुहारे में तो केवल चार ही शाखाएँ हैं, लेकिन उक्त यंत्रों में इतनी अधिक शाखाएँ लगा दी गई कि उनके सम्मेलन से पूरा एक चक्र ही बन गया था।

   प्रतिक्रियात्मक टरबाइनें पानी के प्रवाह के दिशानुसार निम्नलिखित चार मुख्य वर्गों में बाँटी जा सकती हैं : 1. त्रैज्य बहिर्प्रवाही, 2. त्रैज्य अंत:प्रवाही, 3. अक्षीय प्रवाही और 4. मिश्रप्रवाही।


फूर्नेरॉन (Fourneyron) का टरबाइन 

फूर्नेरॉन नामक एक फ्रांसीसी इंजीनियर ने बार्कर मिल के सिद्धांतानुसार केद्रीय जलमार्ग से बाहर की तरफ त्रैज्य दिशा में बहने के लिए मार्गदर्शक तुंडों को तो स्थिर प्रकार का बनाकर, उनके बाहर की तरफ घूमनेवाला पंखुडीयुक्त चक्र बनाया, जैसा चित्र 12 क. की खड़ी काट और उसी के नीचे 12 ख. चिह्नित प्लान में दिखाया है,

   इसमें प केंद्रीय कक्ष है, जिसमें पानी प्रविष्ट होकर त्रैज्य दिशा में फ चिह्नित तुंड में जाकर चक्र की ब चिह्नित पंखों को घुमाता हुआ बाहर निकल जाता है। इसमें घ केंद्रीय धुरा है, जिससे डायनेमो आदि संबंधित रहता है। यह त्रैज्य बहिर्प्रवाही टरबाइन का नमूना है।

   जूवाल (Jouval) का अक्षीय प्रवाहयुक्त टरबाइन - इसकी खड़ी काट चित्र 9 में दिखाई गई है, जिसके विभिन्न अवयवों के संकेताक्षर पूर्ववर्णित टरबाइन चित्र जेसे ही हैं। इसमें पानी का प्रवाह, जैसा बाणचिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया गया है, अक्ष के समांतर ही रहता है।


Inbound Turbine of Francis 

इसकी खड़ी काट चित्र 14 में दिखाई गई है। इसका अभिकल्प जे0 बी0 फ्रैंसिस नामक सुविख्यात अमरीकन इंजीनियर ने बनाया था। इसमें फ चिह्नित टोंटियों में से पानी बाहर की ओर से त्रैज्य दिशा में प्रविष्ट होकर, भीतर की ओर केंद्र के निकट घूमनेवाले पंखों को ढकेलकर चलाता हुआ, नीचे को धुरी के चारों तरफ होता हुआ, बाहर निकल जाता है। इस चित्र के संकेताक्षर भी पूर्ववर्णित टरबाइन चित्र 12 और 13 के सदृश ही हैं।


Runner cycle of turbines 

टरबाइनों का घूमनेवाला चक्र जिसकी परिधि पर डोलचियाँ अथवा पंख लगे होते हैं, धावक कहलाता है। टरबाइनों का यही प्रमुख अवयव है जिसकी उत्तम बनावट तथा संतुलन पर उनकी कार्यक्षमता तथा शक्ति निर्भर करती है। दो प्रकार को टरबाइनें प्राय: अधिक काम आती हैं, एक तो त्रैज्यअंत:प्रवाही प्रतिक्रियात्मक और दूसरी आवेगात्मक। प्रथम प्रकार में से फ्रैंसिस की टरबाइन का जो 100 से लेकर 500 फुट तक के वर्चस्‌युक्त जल के उपयुक्त है। आवश्यकता पड़ने पर 600 फुट वर्चस्‌ के जल का भी इनके साथ उपयोग किया जा सकता है।

   आवेगात्मक टरबाइनों के लिये पेल्टन की दोहरी डोलचियों से युक्त धावनचक्र चित्र 16 में दिखाया गया है, जिसकी डोलचियों की आकृतियाँ दीर्घवृत्तजीय पृष्ठ (ellipsoidal surface) युक्त हैं तथा बाहरी किनारे थोड़े थोड़ कटे हुए हैं। इनमें पानी की प्रधार बिना झटका मारे इन्हें ढकेलकत बिलकुल साफ बाहर निकल जाती है और कटे किनारे के कारण चालू करते समय प्रधार की शक्ति विच्छिन्न नही होने पाती।

   मिश्रप्रवाही टरबाइनों का धावनचक्र चित्र 17 में दिखाया गया है, जो फ्रैंसिस की टरबाइनों का ही परिष्कृत रूप है। इसका अभिकल्प अल्प वर्चस्‌ के जल से तीव्र गति तथा अधिक शक्ति प्राप्त करने के लिए किया गया है। यंत्रशास्त्र के नियमानुसार तीव्र गति के लिए धावनचक्र का व्यास कम करना पड़ता है, लेकिन ऐसा करने से उसकी शक्ति कम हो जाती है; अत: इस दोष को मिटाने के लिए इसका व्यास कम करके भी चौड़ाई बढ़ा दी गई है और पंखों की संख्या कम करके उन्हें केंद्र के निकट कर दिया गया है। इनका प्रयोग 5 से लेकर 150 फुट वर्चस्‌ तक के पानी के साथ किया जा सकता है।


धावनचक्रों की क्षमता 

धावनचक्रों की क्षमता उनकी लाक्षणिक चाल (characteristic speed) द्वारा जाँची जाती है। यदि हम किसी धावनचक्र की विभिन्न नापों को इतना छोटा तथा संकुचित करते जायँ कि वह एक फुट वर्चस्‌ के जल से इतने चक्कर प्रति मिनट लगाने लगे कि उससे एक अश्वशक्ति मिल जाए तो चक्करों की उस संख्या को उस चक्र की लाक्षणिक चाल कहते हैं, 

   इसमें ल (Ns)= लक्षणिक चाल, स (n) = धावन चक्र के चक्कर प्रति मिनट, अ. श. (H.P.) = अश्व शक्ति; व (H) = प्रभावी वर्चस्‌ फुटों में।

   विभिन्न टरबाइनों के लिये लाक्षणिक चालों की सीमा निम्न सारणी में दी गई है:


जल टरबाइनों के प्रकार(Types of Water Turbines)

1 से 5 आवेगात्मक टरबाइन - एक टोंटी युक्त

5 से 10 आवेगात्मक टरबाइन - एक से अधिक टोंटी युक्त

10 से 20 प्रतिक्रियात्मक टारबाइन - मंद चाल युक्त

20 से 50 प्रतिक्रियात्मक टारबाइन - मध्यम चाल युक्त

50 से 80 प्रतिक्रियात्मक टारबाइन - तेज चाल युक्त

80 से 100 प्रतिक्रियात्मक टारबाइन - बहुत तेज चाल युक्त

100 से ऊपर प्रतिक्रियात्मक टारबाइन - एक से अधिक धावन चक्र युक्त 


अनुक्रम  छुपाएँ

1.धावन चक्र का diameter

2. आवेगचक्र(impulse cycle)

3. प्रतिक्रियात्मक टरबाइन (reactive turbine)

4. गतिनियंत्रक यंत्र (Governor) 

5. वर्चस्‌द्वार (Head Gate) 

6. संयंत्रों का विन्यास (Plant Arrangement) 


धावन चक्र का व्यास -

किसी विशेष टरवाइन के लिए धावन चक्र का diameter क्या होना चाहिए, 


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व्यास इंचों में

इस सूत्र में ब (H) = वर्चस्‌ फुटों में; स (n) = धावनचक्र की चाल, चक्कर प्रति मिनट में। गुणांक ग (a) का मान उच्च वर्चसयुक्त टरबाइन के लिए 0.6, मध्यम वर्चस्युक्त टरबाइन के लिये 0.7 और अल्प वर्चस्‌युक्त टरबाइन के लिए 0.8 रखा जाता है।

   जलचलित मोटरों की बनावट - चित्र 7 और 8 में जिन जलचक्रों के आरेख हैं उनके परिष्कृत रूप अब भी थोड़ी मात्रा में शक्ति उत्पादन करने के लिए देहाती क्षेत्रों में प्रयुक्त होते हैं। इनके एकहरे चक्र का व्यास 60 फुट तक बना दिया जाता है तथा उसकी चौड़ाई इतनी रखी जाती है कि वह 3,000 घन फुट पानी प्रति मिनट से चला सके। ये पर्याप्त मंद गति से चला करते हैं, अत: इन्हें पूरे का पूरा इस्पात की चादरों तथा बेले हुए छड़ों से बनाया जाता है। 

   चक्रों की भीतरी परिधियों पर दाँते बना दिए जाते हैं, जिनसे एक तरफ लगा हुआ छोटा दंतचक्र (चित्र 7 और 8 में द चिह्नित) घूमकर अपने से संबंधित धुरी द्वारा यंत्रों को चलाता है। इनके केंद्रीय मुख्य धुरे से यंत्र प्राय: नहीं चलाए जाते, क्योंकि उनपर मरोड़ बल (twisting force) बहुत अधिक पड़कर उनके छूटने की आशंका उत्पन्न कर देता है।


आवेगचक्र(impulse cycle)

पेल्टन के जिस आवेगचक्र का आरेख चित्र 9 में तथा जिसका धावन चक्र चित्र 16 में दिखाया गया है, उसके योग्य टोंटी की बनावट चित्र 18 में दिखाई गई है। इसमें लगे एक सूच्याकार वाल्व के स्पिंडल को चौकोर चूड़ियों के द्वारा हाथचकरी से आगे पीछे सरकाकर टोंटी का मुँह कम या ज्यादा खोलकर, पानी की प्रधार को नियंत्रित किया जाता है। इसका परिचालन नियंत्रक यंत्र द्वारा भी किया जा सकता है, जिसका वर्णन आगे किया जाएगा। पेल्टन के आवेगचक्र प्रयोगशाला के छोटे उपकरणों से लेकर 18,000 अश्वशक्ति उत्पादन योग्य कई मापों में बनाए जाते हैं।


प्रतिक्रियात्मक टरबाइन(reactive turbine)

इसके धावनचक्र ढले लोहे की खोलों में फिट करके इनके पानी का मार्गदर्शन करने वाले गाइड इस प्रकार की चूलों (pivots) पर लगाए जाते हैं कि उनके तिरछेपन का समायोजन करके टरवाइन की चाल पर भी नियंत्रण रखा जा सकत है। इनसे धावनचक्र सुविधानुसार आड़े या खड़े दोनों ही प्रकार से यथेच्छा लगाए जा सकते हैं।


गतिनियंत्रक यंत्र (Governor) 

जलचालित मोटरों के लिये एक नियंत्रक यंत्र का आरेख चित्र 19 में दिखाया गया है, जो साधारण वाट के गवर्नर के नमूने पर दो गेंदों से युक्त है। इसे प्रधान चक्र के धुरे पर लगे एक फट्टे द्वारा चलाया जाता है। चक्र की गति तेज होने पर जब केंद्रापसारी बल के कारण गेंदें ऊपर उठती हैं तब उसका स्लीव (sleeve) वीवल गियरों के बीच लगे एक क्लच से संबंधित होकर, चित्र में बाएँ हाथ की तरफ लगे स्पिडल को घुमाकर, उसके सिरे पर लगे एक वर्म क्षरा वर्मकिर्रे को थोड़ा घुमाकर, 

   एक दंतचक्र को थोड़ा सा घुमा देता है, जिससे संबंधित दंतयुक्त दंड (rack) भी सरक जाता है। इसी दंतदंड से संबंधित छेद युक्त एक वाल्व भी थोड़ा सरक कर पानी के मार्ग को आवश्यकतानुसार अवरुद्ध कर देता है। जल चक्र की गति मंद पड़ने पर इसकी क्रिया विपरीत प्रकार की होने से, इससे संबंधित वाल्व पानी के मार्ग, अथवा मुख्य वाल्व, को अधिक मात्रा में खोल देता है। इस प्रकार का बाल्व चित्र 7 में 'न' चिह्नित स्थान पर, चक्र के ऊपर पानी के मार्ग में, लगा हुआ दिखाया गया है।

   बड़े टरबाइनों के लिये तेल के दाब से काम करने वाला नियंत्रक यंत्र चित्र 20 में दिखाया गया है। इस चित्र में ऊपर की तरफ, क चिह्नित डिब्बे में केंद्रापसारी प्रकार का भायुक्त गतियंत्रक लगा है। इसके नीचे ही पाइलट वाल्व ख है तो उपर्युक्त नियंत्रक द्वारा संचालित होकर अपने नीचे लगे ग बाल्व को जब खोल देता है, तब दाबयुक्त तेल सिलिडर घ में प्रवेश करके उसमें लगे पिस्टन तथा बाहर की तरफ उसमें जुड़े, कनेकिंटग राँड च को चलाकर पानी के प्रवेशमार्ग को आवश्यकतानुसार कम या ज्यादा खोल देता है। इस उपकरण में नीचे की तरफ एक परिभ्रामी पंप छ लगा है, जो तेल में आवश्यक दाब बनाए रखता है।


वर्चस्‌द्वार (Head Gate) 

इसे खोलने तथा बंद करने की अनेक प्रकार की प्रयुक्तियाँ अभिकल्पित की गई हैं। ये द्वार बहुत ही दृढ़ बनाए जाते हैं, जिन्हें ऊपर नीचे सरकाने के लिये प्राय: दाँतेदार प्रयुक्तियों का ही प्रयोग किया जाता है, जो हाथ तथा शक्ति द्वारा दानों ही प्रकार से संचालित की जा सके। हाथ से चलाए जानेवाले एक द्वार का नमूना चित्र 21 में दिखाया गया है, जिसे चलाने वाले हैंडिल तथा किर्रे और रैक आदि स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।


संयंत्रों का विन्यास (Plant Arrangement) 

चित्र 22, 23, 24, और 25 में नमूने के लिये चार प्रकार के विन्यास दिखाए गए हैं, जिनमें वर्चसद्वार, जलनालिकाएं (flumes), टरबाइन डायनेमी और भवन आदि दिखाए गए हैं। चित्र 22 में अन्य वर्चस्‌ के जल के साथ खड़ी टरबाइन और चित्र 25 में अल्प वर्चस्‌ जल के साथ आड़ी टरबाइन दिखाई गई है। चित्र 23 में उच्च वर्चस्‌ जल के साथ आड़ी टरवाइन और चित्र 24 में उच्च वर्चस्‌ जल के साथ खड़ी टरबाइन दिखाई गई है।

   जल टरबाइनों की कार्यक्षमता - किसी भी जल टरबाइन की सैद्धांन्तिक अश्वशक्ति प्रति मिनट उसपर गिरनेवाले पानी के भार तथा जितनी ऊँचाई से वह गिरता है उसके गुणनफल के अनुपात से जानी जा सकती है। उदाहरणत: यदि स्लूस मार्ग द्वारा प्रति मिनट टरबाइन पर आनेवाले पानी का आयतन आ (V) घन फुट हो तो उस पानी का भार भ = अ 62.4 (W = V 62.4) पाउंड होगा। यदि उस पानी का वर्चस्‌ ऊ(h) फुट हो तो उसकी सैद्धांतिक अश्वशक्ति होगी लेकिन किसी चालक यंत्र की कार्यक्षमता उसकी सैद्धांतिक अश्वशक्ति, 

   और वास्तविक प्रदत्त अश्वशक्ति का अनुपात समझी जाती है। प्रदत्त अश्वशक्ति को रोधन या ब्रेक अश्वाशक्ति (brake horse power, B.H.P.) भी कहते हैं; अत: किसी जल टरबाइन की कार्यक्षमता यदि किसी जल टरबाइन की कार्यक्षमता 80 प्रति शत मान ली जाए तो उसकी रोधक (ब्रेक) अश्वशक्ति सं. ग्रं. - वाटर ह्वील ऐंड टरबाइन मशीनरी, खंड 6, मशीनरी पब्लिशिंग कं. लि., लंदन, ऐंड्रू जैमिसन : हाइड्रॉलिक्स; प्रो. उब्लू. जे लिमहैम: मिकैनिकल इंजीनियरिंग। (ओं. ना. श.)


जल टर्बाइन इतिहास(Water Turbine History)

जलविद्युत शक्ति एक अपेक्षाकृत नया आविष्कार है, लेकिन पानी की यांत्रिक शक्ति दो सहस्राब्दियों से अधिक समय से उपयोग में है।  पहिए के आविष्कार के बाद जल्द ही पानी के पहिये का आविष्कार हुआ, एक उपकरण जो किसी अन्य उपकरण को यंत्रवत् शक्ति देने के लिए धाराओं, नदियों और पानी के अन्य निकायों की नीचे की गति का उपयोग करता है 

   जलविद्युत शक्ति एक अपेक्षाकृत नया आविष्कार है, लेकिन पानी की यांत्रिक शक्ति दो सहस्राब्दियों से अधिक समय से उपयोग में है।  पहिए के आविष्कार के बाद जल्द ही पानी के पहिये का आविष्कार हुआ, एक उपकरण जो किसी अन्य उपकरण को यांत्रिक रूप से शक्ति देने के लिए धाराओं, नदियों और पानी के अन्य निकायों की नीचे की गति का उपयोग करता है।

   पानी के पहिये का सबसे पहला ज्ञात संस्करण ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के मध्य से आता है, मेसोपोटामिया, एक क्षैतिज, प्रोपेलर जैसा कोंटरापशन जिसका उपयोग आटा पीसने के लिए चक्की को मोड़ने के लिए किया जाता था।  यह प्रभावी साबित हुआ और दक्षिणी यूरोप और चीन में डिजाइन को पकड़ लिया गया।  वाटर व्हील का मूल तंत्र पुरानी दुनिया (यूरेशिया और अफ्रीका) में फैल गया और कई अलग-अलग रूप ले लिया, लेकिन मूल अवधारणा वही रही।  जैसे-जैसे जल मिल को और परिष्कृत किया गया, इसकी ऊर्जा दक्षता में वृद्धि हुई।

   18वीं सदी के मध्य के दौरान, फ्रांसीसी हाइड्रोलिक और सैन्य इंजीनियर बर्नार्ड फ़ॉरेस्ट डी बेलीडोर ने आर्किटेक्चर हाइड्रोलिक लिखा, जो ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज-अक्ष मशीनों का वर्णन करने वाला चार-खंड का काम है।  आधुनिक जलविद्युत के विकास के लिए हाइड्रोलिक्स को समझना आवश्यक था क्योंकि जब 19 वीं शताब्दी के अंत में विद्युत जनरेटर विकसित किया गया था, तो इसे जलविद्युत उत्पन्न करने के लिए हाइड्रोलिक्स के साथ जोड़ा जा सकता था।

   लगभग उसी समय के आसपास, हंगेरियन आविष्कारक और इंजीनियर जोहान सेग्नर ने प्रतिक्रियाशील जल टरबाइन का अपना संस्करण विकसित किया, जिसे सेग्नर व्हील के रूप में भी जाना जाता है।  सेग्नर व्हील में एक ऊर्ध्वाधर अक्ष था और एक घूर्णी बल पैदा करते हुए, नोजल से पानी निकालने के लिए हाइड्रोस्टेटिक दबाव का उपयोग करता है।  कई मायनों में यह आधुनिक जल टर्बाइनों के लिए एक प्रोटोटाइप के रूप में कार्य करता है।

   औद्योगिक क्रांति ने जलविद्युत शक्ति के विकास को गति दी क्योंकि जल मिलों को धीरे-धीरे जल टर्बाइनों में परिवर्तित कर दिया गया।  19वीं शताब्दी के मध्य तक, टर्बाइनों में अनुसंधान ने 75% से अधिक की ऊर्जा क्षमता को जन्म दिया (शुरुआती पानी के पहियों की तुलना में, जो केवल 20% कुशल थे)।  1848 में, जेम्स बी फ्रांसिस ने पानी के टरबाइन के डिजाइन में सुधार किया और 90% दक्षता हासिल की।  उनकी उच्च दक्षता वाली टर्बाइन पानी के अलग-अलग निकायों की अद्वितीय प्रवाह स्थितियों से मेल खा सकती हैं।  आज तक, यह संचालन में सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली टरबाइन बनी हुई है।

   1831 और 1832 के बीच, माइकल फैराडे ने पहला विद्युत जनरेटर विकसित किया।  हालांकि फैराडे डिस्क नाम का उपकरण वास्तव में जनरेटर के रूप में अक्षम था, लेकिन इसने विद्युत ऊर्जा के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम को चिह्नित किया।  विद्युत जनरेटर के पीछे की अवधारणा ने पूरे 19वीं शताब्दी में प्रयोग, समायोजन और शोधन किया, जिसकी परिणति 1866/1867 की सर्दियों में आधुनिक प्रत्यक्ष वर्तमान डायनेमो के आविष्कार में हुई।

   1878 ने उस वर्ष को चिह्नित किया जब पहली बार पनबिजली का उपयोग व्यावहारिक उद्देश्य के लिए किया गया था।  इंग्लैंड के नॉर्थम्बरलैंड के क्रैगसाइड गांव में, विलियम आर्मस्ट्रांग ने अपने घर के पास एक झील के पानी का इस्तेमाल सीमेंस डायनेमो को बिजली देने के लिए किया, जिसने उनकी आर्ट गैलरी में सिंगल आर्क लैंप के लिए विद्युत ऊर्जा का निर्माण किया।

   1880 में, ग्रैंड रैपिड्स, मिशिगन में एक थिएटर और एक स्टोरफ्रंट के लिए प्रकाश प्रदान करने के लिए एक पानी के टरबाइन का उपयोग किया गया था, और 1881 में एक आटा चक्की में इस्तेमाल की जाने वाली पानी की टरबाइन ने न्यूयॉर्क के नियाग्रा फॉल्स में स्ट्रीट लाइटिंग प्रदान करना शुरू किया।

   विद्युत प्रकाश व्यवस्था के आगमन के साथ, केंद्रीकृत विद्युत ऊर्जा स्टेशन बनाने की एक नई मांग थी।  थॉमस एडिसन ने 4 सितंबर 1882 को अमेरिकी राज्य न्यूयॉर्क में दुनिया का पहला विद्युत संयंत्र बनाया, इसका अनावरण किया। कुछ ही हफ्तों बाद, 30 सितंबर, 1882 को फॉक्स नदी पर दुनिया के पहले जलविद्युत संयंत्र का संचालन शुरू हुआ।  एपलटन, विस्कॉन्सिन।  हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट एपलटन पेपर निर्माता एचजे रोजर्स द्वारा बनाया गया था और बाद में इसे एपलटन एडिसन लाइट कंपनी का नाम दिया गया।

   सबसे पहले, फॉक्स रिवर स्टेशन खुद को, पास की एक इमारत और एचजे रोजर्स के घर को बिजली देने के लिए पर्याप्त ऊर्जा जुटा सकता था।  हालांकि, सुधार और विस्तार के बाद बाद में स्टेशन एपलटन शहर के लिए विद्युत ऊर्जा का भरपूर स्रोत प्रदान करेगा।

   19वीं शताब्दी के अंत में, अमेरिका में जलविद्युत ऊर्जा के पसंदीदा स्रोत के रूप में उभरा, क्योंकि देश में बहुत सारी नदियाँ थीं और जलविद्युत सस्ता और विश्वसनीय था।  बाकी दुनिया ने जल्द ही पकड़ लिया और 1900 तक, यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में फैले सैकड़ों छोटे जलविद्युत संयंत्र संचालन में थे।  चीन में, 1905 में, ताइपे के पास ज़िन्दियन क्रीक पर 500 kW जलविद्युत स्टेशन बनाया गया था।

   जलविद्युत पर हमारे अगले लेख में, हम 20वीं शताब्दी से इस प्रकार की नवीकरणीय ऊर्जा के नवीनतम विकास तक जलविद्युत के इतिहास को कवर करेंगे।  


वाटर टर्बाइन जेनरेटर का निर्माण कैसे करें 


वाटर टर्बाइन जनरेटर घर पर न्यूनतम सामग्री के साथ बनाए जा सकते हैं।  टर्बाइन को चालू करने और बिजली पैदा करने के लिए चलती पानी प्रमुख प्रेरक शक्ति है।  साइकिल के पुर्जों और एक पुराने ऑटोमोटिव जनरेटर का उपयोग करके, वोल्टेज और ताकत के किसी भी वांछित स्तर को हासिल करने के लिए कई पानी के टर्बाइनों को नियोजित किया जा सकता है।  औसत पिछवाड़े का इंजीनियर लगभग एक दिन में पानी का टरबाइन बना सकता है।

Step 1

 बाइक से आगे का पहिया हटा दें।  एक्सल नट को वामावर्त दिशा में घुमाने से यह हटाने के लिए ढीला हो जाएगा।

 Step 2

 साइकिल के पैडल से चेन हटा दें।  इसे केंद्र से दूर धकेलते हुए श्रृंखला को घुमाने से यह पूरा हो जाएगा।

 Step 3

 पेडल के नीचे कार जनरेटर या अल्टरनेटर को वेल्ड या माउंट करें, ताकि जब चेन अल्टरनेटर की चरखी के चारों ओर लपेटी जाए, तो यह केंद्रित हो।  पेडल के गियर स्प्रोकेट में से एक के साथ चरखी को बदलें, या स्प्रोकेट को चरखी के शीर्ष पर जगह में वेल्ड करें, इसे केंद्र में रखना और इसके गियर-दांतों की मंजूरी की जांच करना सुनिश्चित करें।  जब चेन को स्प्रोकेट के चारों ओर लपेटा जाता है, तो अल्टरनेटर को पीछे के पहिये से मुड़ना चाहिए।

Step 4

 बाइक की सीट को पूरी तरह से ऊपर उठाएं।  आमतौर पर इसमें एक स्क्रू प्लेट होती है जिसे ढीला और समायोजित किया जा सकता है।

 Step 5

 कई दर्जन प्लास्टिक गेंदों को आधा में देखा।

 Step 6

 साइकिल के पिछले पहिये पर प्लास्टिक बॉल के हिस्सों या छोटे प्लास्टिक के कपों को पेंच करें, लगभग दो इंच की दूरी पर, और सभी एक ही दिशा में।  अल्टरनेटर से मेल खाने के लिए "कप" को दक्षिणावर्त दिशा में जाना चाहिए।

 Step 7

 बाइक को एक नाले या बहते पानी के स्रोत में उल्टा रखें ताकि सीट पानी में रहे।  कपों को पानी की धारा का सामना करना चाहिए ताकि वे पहिया को धक्का दें।  यदि पानी का प्रवाह पर्याप्त मजबूत है, तो पहिया घूमता रहेगा और कुछ एम्पों पर 12 वोल्ट बिजली उत्पन्न करेगा।  किनारे पर या बिजली उपकरण के लिए बैटरी चार्ज करने के लिए अल्टरनेटर को तार दें।


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मुझे आशा है की मैंने आप लोगों को वाटर टर्बाइन किया है? वाटर टर्बाइन जेनरेटर का निर्माण कैसे करें? के बारे में पूरी जानकारी दी और में आशा करता हूँ आप लोगों को वाटर टर्बाइन किया है? वाटर टर्बाइन जेनरेटर का निर्माण कैसे करें? के बारे में समझ आ गया होगा. यदि आपके मन में इस article को लेकर कोई भी doubts हैं या आप चाहते हैं की इसमें कुछ सुधार होनी चाहिए तब इसके लिए आप नीच comments लिख सकते हैं. आपके इन्ही विचारों से हमें कुछ सीखने और कुछ सुधारने का मोका मिलेगा. यदि आपको मेरी यह लेख एन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन क्या है हिंदी में अच्छा लगा हो या इससे आपको कुछ सिखने को मिला हो तब अपनी प्रसन्नता और उत्सुकता को दर्शाने के लिए कृपया इस पोस्ट को Social Networks जैसे कि Facebook, Pinrest और Twitter इत्यादि पर share कीजिये.

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